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जीवित प्राणी, 5 तत्व और 3 चक्र
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जीवित प्राणी, 5 तत्व और 3 चक्र (कृष्ण शिव कृश्नांश, जीवन का सारांश) 5 तत्वों से मनुष्य बनता है, ऐसा हम जानते है। इन 5 तत्वों को मिलाकर, अलग अलग composition के कितने भी molecules (अणु) बनाए जा सकते हैं। एक जीवित प्राणी कुल 24 molecules से बनता है। और प्राणी को चलाने वाले 3 चक्र होते हैं दसांग चक्र दसांश चक्र त्रिचक्र (पुरुष) tripplec चक्र (स्त्री) दसांग चक्र दस अंगो को सुचारू रूप से चलाने के लिए होता है । 5 sense organs, और 5 functional organs का आपस में तालमेल बना रहे, ये संभव होता है दसांग चक्र की गति maintain करने से। दसांग चक्र बनता है 3 molecule से कृष्ण molecule (नाभि) कृश्नांश molecule (हृदय) शिवा molecule ( मस्तक) नाभि में मन बसता है, और मस्तक में बुद्धि। मन मे विचार आते है और बुद्धि इन्हें filter करती है, निर्णय लेती है क्या करना है। Heart energy generator है, जिससे कार्य करने के लिए ऊर्जा बनती है। दसांग चक्र awakened रखने से प्राणी की working effeciency improve होती है। दसांश चक्र बुद्धि को सही दिशा में निर्णय लेने के लिए ज्ञान की आवश्यकता होती है। दसांश चक्र की गति
जीवन के विभिन्न युग
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माँ से ही करनी होती है प्रार्थना। क्योंकि माँ है बच्चे की पहली गुरु। उसे पता होना चाहिए कि गुरु होकर क्या नही सिखाना। अभी तो सिखाना शब्द पर ही confusion है। teacher और गुरु में फर्क है। जो भी सोचती है या महसूस करती है, वो सब बच्चा गर्भ में absorb करता है। अक्सर माँ को पता ही नही होता कि उसने क्या सिखा दिया बच्चे को। प्रकृति ने हर योनि, हर शरीर को आत्मनिर्भर बनाया है। सिर्फ माँ बनने के लिए स्त्री पुरुष पर निर्भर करती है। पुरुष को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी जरूरी है कि जो वो दे रहा है, वही deliver करेगी स्त्री। society में unrest, confusion बढ़ता गया। क्योंकि एक जिम्मेदारी प्रकृति ने स्त्री और पुरुष को दी थी, की अपनी सांस ठीक से लेनी है। स्त्री में माँ बनने की इच्छा थी, desire। और इसलिए उसकी needs भी थी, जो पूरी ना होने पर greed बनती चली गयी। कुल मिलाके जीवित प्राणी में 24 molecules यानी तत्व होते है। और सभी को balance रखना होता है जरूरी। युगों के बारे में हम जानते हैं कि 4 युग होते है। पहला युग है सतयुग, यानी total enjoyment का युग। किसी प्रकार की कोई चिंता नही। 0 से 10 साल तक चलता है
कृष्ण का सफर द्वारकाधीश से कृष्णेन्द्र तक
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Present यानी वर्तमान में हम या तो अपने कर्मफलों को enjoy करते हैं या कष्ट झेलते हैं। positive attitude रखना चाहिये, ये तो बहुतो ने कहा। लेकिन reality को reject कर देना या उससे आंखे मूंद लेना कोई solution नही है समस्याओं का। अब कृष्णराज्य चल रहा है जिसमे confusion की कोई जगह नही। कृष्ण के जीवन को समझें तो कृष्ण बचपन मे कहलाये गोपाल, क्योंकि नंद के घर पले। वहाँ गाय पालने का काम होता था इसलिए कहलाये वे गो पाल। फिर कंस का वध करने के बाद उन्होंने द्वारका नगरी बसाई। और कृष्ण कहलाये द्वारकाधीश। तभी उन्होंने पृथ्वी से छल समाप्त करने का काम शुरू किया। महाभारत के युध्द की रचना हुई । उन्हीं 18 दिनों में बलराम, जो कि कृष्ण के बड़े भाई, और शेष के रूप थे, ने निश्छलता के बीज बोए। हलधर कहलाते थे बलराम। फिर कृष्ण पहुंचे जगन्नाथ पुरी, बलराम और सुभद्रा, कृष्ण की बहन, के साथ। वहाँ पर मंदिर में मूर्ति रूप में रहे। उसके बाद nov 2019 में पूरी से दिल्ली आ गए। कालकाजी मंदिर के पास एक काली माई चौक है, जिसके 3 मील के घेरे में निष्छल टेम्पल काल सर्कल है। वही कृष्ण रहे, और अब बन चुके हैं वे कृष्णेन्द्र। इन्द्रप्र
Confusion removed
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गुरु शुक्राचार्य अश्वनीजी के guidance में कृष्णेन्द्र कथा शुरू की गई है,confusion से निकलना सिखाने के लिए। कृष्णराज्य की implementation का काम अब शुरू हो चुका है, तो हर तरह के कष्ट से निकलना अब मुमकिन है। जीवन मे तीन तरह के कष्ट होते है, एक ज्ञान की कमी, फिर बुद्धि के decision making की कमी, और ऊर्जा की कमी। इस शरीर की सीमा को समझना होगा, क्योंकि confusion से निकलने के लिए अपने शरीर को समझना जरूरी है। ब्रह्मा जी ने स्त्री को बनाया तो साथ मे वरदान दिया कि किसी भी पुरुष को बुला सकती हो। अब योग यानी जुड़ना का कांसेप्ट गायब होता गया। क्योंकि समाज में यह समझ नही आ पाई कि यह स्त्री का निर्णय है कि उसे किस से जुड़ना है यानी विवाह करना है। और confusion की layer बढ़ती चली गयी। पति की किस्मत पत्नी से जुड़ जाती है, ये त्रेता युग के युगल भगवान राम सीता के जीवन से दिखता है। क्योंकि सीताजी का योग रामजी से हो चुका था स्वयम्वर से पहले ही, और ये बात राजा जनक को नही बतायी गई। छल हुआ और यही भुगतना पड़ा राम सीता को आयु भर। पहला confusion female को कि जिसको चाहे बुला सकती है, और experimenting शुरू कर दी, दूसरा
कृष्णेन्द्र कथा
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कृष्ण बने द्वारकाधीश, फिर जगन्नाथ और अब बने कृष्णेन्द्र। कृष्णईष्ट मंदिर में दरबार लगा कृष्णेन्द्र का 29 अक्टूबर को। जीवन जीने की दिशा बताते हैं कबीर जी के दोहे। वे बताते है कि ज्ञान कैसे कमाना है । योग्यता कैसे बढानी है ज्ञान प्राप्त करने के लिए। अपने कर्मफलों के अनुसार ही मिलता है शरीर। बाकी सभी योनियां भोग योनि है, यानी सिर्फ भुगत सकते हैं अपने कर्मफल। मनुष्य योनि योग योनि है यानी आप decide कर सकते हैं कि आपको भुगतना कैसे है। वेद है user manual मनुष्य योनि के लिए। यदि पढ़ना नही आया तो experimenting की तरफ मुड़ जाते है, जो कि कई बार नुकसान कर सकता है। Technology को use करना आना चाहिए। किसने बनाई, क्यों बनाई, या कैसे, यह जानना इतना जरूरी नही है। हर physical body को use करने से पहले उसके नियम जान लेने चाहिए। जैसे 33 करोड़ देवी देवताओं के बारे में बात की जाती है। इसे एक धर्म से जोड़कर देखा जाता है। जबकि universal नियम सभी पे लागू होते है। जैसे श्वास के नियम, सूर्य से energy रिसीव करने के नियम। किसी एक धर्म या विश्वास से जोड़कर आप technology को reject कर नही सकते। करे तो अपना ही नुकसान है